+ सर्वथा में नियामकता दोषपूर्ण -
सर्वथा शुद्धः सर्वप्रकारवाची, अथवा सर्वकालवाची, अथवा सर्वनियमवाची वा, अनेकान्तसापेक्षी वा ? यदि सर्वप्रकारवाची, सर्वकालवाची अनेकानां वागू वा, सर्वादिगणे पठनात्सर्वशब्दः एवंविधः, चेत्‌, न हि सिद्धान्तः समीहितम्‌ । अथवा नियमवाची वा अनेकान्तसापेक्षी वा । यदि सव-वाची -कालवाची अनेका-सवाल बना सबको पठनान् । ससाद एसंविधशोय सिद्ध: ना समीहितसू है अथवा नियमवाची सेकी सकलार्थानां तव प्रतीति: काई स्थात् ? नित्यः अनित्यः, एकः, अनेकः, भेदः, अभेदः, कथं प्रतीतिः स्यात्‌, नियमितपक्षत्वात्‌ ? ॥140॥
अन्वयार्थ : सर्वथा शब्‍द सर्वप्रकारवाची है, अथवा सर्वकालवाची है, अथवा नियमवाची है, अथवा अनेकान्‍तवाची है? यदि सर्व-आदि गण में पाठ होने से सर्वथा शब्‍द सर्वप्रकार, सर्वकालवाची अथवा अनेकान्‍तवाची है तो हमारा समीहित अर्थात् इष्‍टसिद्धान्‍त सिद्ध हो गया । यदि सर्वथा शब्‍द नियमवाची है तो फिर नियमित पक्ष होने के कारण सम्‍पूर्ण अर्थो की अर्थात् नित्‍य-अनित्‍य, एक-अनेक, भेद-अभेद आदि रूप सम्‍पूर्ण पदार्थों की प्रतीति कैसे होगी ? अर्थात् नहीं हो सकेगी ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

अन्‍य मत वाले सर्वथा शब्‍द का अर्थ 'नियम' करते है । अतः 'सर्वथा' शब्‍द के प्रयोग को मिथ्‍या कहा है --

परसमयाणं वयणं मिच्‍छं खलु होदि सव्‍वहा वयणा ।;;जाइणाणं पुण वयणं सम्‍मं खु कहंचि वयणादो ॥गो.क.८६५॥
अर्थ – मिथ्‍यामतियों का वचन सर्वथा कहने से नियम से मिथ्‍या अर्थात् असत्‍य होते हैं और जैनमत के वचन 'कथंचित्' का प्रयोग होने से सम्‍यक् हैं अर्थात् सत्‍य हैं ।