पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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सर्वथा अचेतन में दोष
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तथा अचैतन्यपक्षेऽपि सकलचैतन्योच्छेदः स्यात् ॥141॥
अन्वयार्थ :
वैसे ही सर्वथा अचेतन पक्ष के मानने पर सम्पूर्ण चेतन का उच्छेद हो जायगा, क्योंकि केवल अचेतन ही माना गया है ।
मुख्तार