+ सर्वथा मूर्त में दोष -
मूर्तस्यैकान्तेनात्मनः मोक्षस्य नावाप्तिः स्यात्‌ ॥142॥
अन्वयार्थ : सर्वथा एकान्‍त से आत्‍मा को मूर्त स्‍वभाव के मानने पर आत्‍मा को कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी, क्‍योंकि अष्‍ट कर्मो के बन्‍धन से मुक्‍त हो जाने पर सिद्धात्‍मा अमूर्तिक है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र १०३ व २९ के विशेषार्थ में मूर्त अमूर्त का विशेष कथन है ।