
मुख्तार :
सूत्र १०३ व २९ के विशेषार्थ में यह कहा जा चुका है कि अनादि कर्म-बंध के कारण आत्मा मूर्तिक हो रही है और कर्मो से मुक्त होने पर अमूर्तिक हो जाती है । यदि आत्मा को सर्वथा अमूर्तिक माना जायगा तो संसार के अभाव का प्रसंग आयेगा, क्योंकि संसारी आत्मा कर्म-बंध के कारण मूर्तिक है । |