+ एक-स्‍वभाव -
भेदकल्पनानिरपेक्षेण एकस्वभावः ॥154॥
अन्वयार्थ : भेदकल्‍पनानिरपेक्ष शुद्धद्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा एकस्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

भेदकल्‍पना-निरपेक्ष शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का स्‍वरूप सूत्र ४९ में कहा गया है । यह नय गुण-गुणी को अभेदरूप से ग्रहण करता है अर्थात् द्रव्‍य में भेदरूप से गुणों को ग्रहण नहीं करता । जैसा कि समयसार में कहा है --

णवि णाणं ण चरित्तं ण द्ंसणं जाणगो सुद्धो ॥स.सा.७॥
अर्थात् जीव के न ज्ञान है, न चारित्र है, न दर्शन है, वह तो एक ज्ञायक, शुद्ध है।

यह कथन भेदकल्‍पना-निरपेक्ष शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय की दृष्टि से है ।