
मुख्तार :
सूत्र ५३ व १८७ में अन्वय-सापेक्ष द्रव्यार्थिक नय का कथन है । वहां पर दृष्टान्त दिया है -- 'यथा गुणपर्यायस्वभावं द्रव्यम्' । अर्थात् द्रव्य गुण-पर्याय स्वभाव वाला है । द्रव्य एक है किन्तु गुण और पर्याय अनेक है । अतः इस नय की दृष्टि में एक द्रव्य के अनेक स्वभाव होते हैं । जैसे -- एक ही देवदत्त पुरूष की बाल-वृद्ध अवस्था होती है । अथवा उन अवस्थाओं में एक ही देवदत्त रहता है । |