+ जीव का चेतन-स्‍वभाव -
शुद्धाशुद्धपरमभावग्राहकेण चेतनस्वभावो जीवस्य ॥159॥
अन्वयार्थ : शुद्धाशुद्ध-परमभावग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा से जीव के चेतन-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

चेतनस्‍वभाव जीव का लक्षण है, वह पारिणामिक भाव है । किन्‍तु छद्मस्‍थ अवस्‍था में वह चेतन-स्‍वभाव अशुद्ध रहता है और परमात्‍म अवस्‍था में आवरक कर्म के क्षय हो जाने से शुद्ध हो जाता है । परमभाव-ग्राहक नय की अपेक्षा जीव के चेतन-स्‍वभाव है ऐसा सूत्र ५६ में कहा गया है । चेतन-स्‍वभाव शुद्ध-अशुद्ध दो प्रकार का है अतः परमभाव-ग्राहक द्रव्‍यार्थिक नय को भी शुद्धाशुद्ध-परमभावग्राहक द्रव्‍यार्थिकनय कहा है ।