+ जीव का मूर्त-स्‍वभाव -
जीवस्‍याप्‍यसद्‍भूतव्‍यवहारेण मूर्त्तस्‍वभाव: ॥164॥
अन्वयार्थ : असद्भूतव्‍यवहार-उपनय की अपेक्षा जीव के भी मूर्तस्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र २०७ में असद्भूत व्‍यवहारनय का कथन है । सूत्र १०३ व २९ के विशेषार्थ में जीव के मूर्त-स्‍वभाव के विशेष कथन है और सूत्र ८६ में विजात्‍यसद्भूत व्‍यवहार-उपनय का कथन है । कर्म-बंध की अपेक्षा जीव में मूर्त-स्‍वभाव है जो विजात्‍यसद्भूत व्‍यवहारनय का विषय है ।