+ पुद्गल का अमूर्त-स्‍वभाव -
पुद्गलस्योपचारादपि नास्त्यमूर्तत्वम्‌ ॥166॥
अन्वयार्थ : पुद्गल के भी उपचार से अमूर्त-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

विजात्‍यसद्भूत व्‍यवहार-उपनय का कथन सूत्र ८६ में है । यद्यपि अमूर्तत्‍व पुद्गल का निजस्‍वभाव नहीं है तथापि जीव के साथ बंध की अपेक्षा कर्मरूप पुद्गल भी सूत्र १६० में कथित चेतन-स्‍वभाव के समान अमूर्त-स्‍वभाव को प्राप्‍त हो जाता है । अत: यह विजाति-असद्भूत-व्‍यवहार-उपनय का कथन है ।