
मुख्तार :
सूत्र १०० में बतलाया गया इै कि पुद्गल-परमाणु के द्वारा व्याप्त क्षेत्र को प्रदेश कहते हैं । अत: पुद्गल परमाणु एकप्रदेश-स्वभावी है । आकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु है । अत: कालाणु भी एकप्रदेश है । लोयायासपदेसे इक्किक्के जे ठिया हु इक्किक्का ।
अर्थ – जो लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर रत्नों के ढेर के समान परस्पर भिन्न होकर एक-एक स्थित है वे कालाणु असंख्यात द्रव्य है ।रयणाणं रासी इव ते कालाणु असंखद्व्वाणि ॥वृ.द्र.सं.२२॥ लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश का एक-एक कालाणु है अत: कालाणु भी एकप्रदेश-स्वभाव वाला है । अत: पुद्गल-परमाणु और कालाणु का एकप्रदेश-स्वभाव परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय का विषय है । परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक नय का कथन सूत्र ५६ व १९० में है । |