
मुख्तार :
भेद-कल्पनानिरपेक्ष द्रव्यार्थिकनय का कथन सूत्र ७९ में है । प्रदेश और प्रदेशवान् का भेद न करके धर्मादि द्रव्यों को अखण्डरूप से ग्रहण करने पर उनमें बहु-प्रदेशत्व गौण हो जाता है और वे अखण्ड एकरूप से ग्रहण होने पर उनमें एकप्रदेश-स्वभाव सिद्ध हो जाता है जो भेद-कल्पना-निरपेक्ष शुद्ध-द्रव्यार्थिकनय का विषय है । |