+ द्रव्यों का नानाप्रदेश-स्‍वभाव -
भेदकल्पनासापेक्षेण चतुर्णामपि नानाप्रदेशस्वभावत्वम्‌ ॥169॥
अन्वयार्थ : भेदकल्‍पना-सापेक्ष अशुद्ध द्रव्‍यार्थिक-नय की अपेक्षा धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य और जीव-द्रव्‍य के नानाप्रदेश-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

भेदकल्‍पनासापेक्ष-अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का कथन सूत्र ५२ में है । द्रव्‍य में प्रदेश-खण्‍ड का भेद किया जाता है तो धर्मादि चार द्रव्‍यों का बहुप्रदेश-स्‍वभाव है ।

असंख्‍येया: प्रदेशा धर्माधर्मैकजीवानाम् ॥त.सू.५/८॥
आकाशस्‍यानन्‍ता: ॥त.सू.५/९॥
अर्थ – धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, एक जीव-द्रव्‍य के असंख्‍यातप्रदेश हैं । आकाश के अनन्‍त प्रदेश हैं ।

बहु-प्रदेश के कारण धर्मादि द्रव्‍यों की अस्तिकाय संज्ञा है ।