+ कालाणु के उपचरित-स्‍वभाव नहीं -
अणोरमूर्तकालस्‍यैकविंशतितमो भावो न स्‍यात् ॥171॥
अन्वयार्थ : अमूर्तिक कालाणु के २१ वाँ अर्थात् उपचरित-स्‍वभाव नहीं है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

कालाणु में उपचरित-स्‍वभाव नहीं है ऐसा सूत्र ३०-३१ में कहा गया है । जब कालाणु में उपचरित-स्‍वभाव ही नहीं है तो कालाणु उपचार से बहुप्रदेशी कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता । पुद्गल में उपचरित स्‍वभाव है, अत: पुद्गल परमाणु में उपचार से नानाप्रदेश-स्‍वभाव भी सम्‍भव है ।