+ पुद्गल का अमूर्त-स्‍वभाव -
परोक्षप्रमाणापेक्षयाऽसद्भूतव्‍यवहारेणापयुपचारेणामूर्तत्‍वं पुद्गलस्‍य ॥172॥
अन्वयार्थ : परोक्षप्रमाण की अपेक्षा से और असद्भूतव्‍यवहार उपनय की दृष्टि से पुद्गल के उपचार से अमूर्त स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र १० के विशेषार्थ में बतलाया गया है स्‍पर्श, रस, गंध, वर्ण को मूर्त कहते हैं । सूत्र ११ के विशेषार्थ में कहते हैं कि जो स्‍पर्श किया जाय, चखा जाय, सूंघा जाय और देखा जाय, वह स्‍पर्श, रस, गंध, वर्ण है । किन्‍तु पुद्गल-परमाणु स्‍पर्शनादि इन्द्रियों द्वारा स्‍पर्श नहीं होता, चखा नहीं जाता, सूंघा नहीं जाता, देखा नहीं जाता, परोक्षज्ञान अर्थात् मति-श्रुत ज्ञान इन्द्रिय निमित्तिक है । अत: सूक्ष्‍म पुद्गल-परमाणु परोक्षज्ञान अर्थात् इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य न होने से अमूर्त है । विजात्‍यसद्भूतव्‍यवहार उपनय की अपेक्षा पुद्गल के उपचार से अमूर्त स्‍वभाव है जैसा सूत्र १६६ में कहा जा चुका है । सूत्र १६६ की दृष्टि से इस सूत्र की कोई विशेष आवश्‍यकता नहीं है, इसीलिए संस्‍कृत नयचक्र में यह सूत्र नहीं है ।