+ स्‍वभाव विभाव -
शुद्धाशुद्धद्रव्‍यार्थिकेन स्‍वभावविभावत्‍वम् ॥173॥
अन्वयार्थ : शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्‍य में स्‍वभाव भाव है और अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा जीव, पुद्गल में विभाव-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र १८५‍ में शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का कथन है और सूत्र १८६ में अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का कथन है । स्‍वभाव-भाव शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है । विभाव-भाव अशुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है । पर से बंध होने पर ही द्रव्‍य में अशुद्धता आती है । जीव और पुद्गल, ये दो द्रव्‍य बंध को प्राप्‍त होते हैं अत: जीव और पुद्गल में ही विभाव भाव है, धर्मादि शेष चार द्रव्‍यों में विभाव भाव नहीं होता ।