+ उपचरित-स्‍वभाव -
असद्भूतव्‍यवहारेण उपचरितस्‍वभाव: ॥176॥
अन्वयार्थ : असद्भूतव्‍यवहार नय की अपेक्षा उपचरित-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

उपचरित-स्‍वभाव मात्र जीव और पुद्गल में है । शेष द्रव्‍यों में उपचरित-स्‍वभाव नहीं है । यह उपचरितभाव असद्भूतव्‍यवहार उपनय का विषय है ।

द्रव्‍याणां तु यथारूपं तल्‍लोकेऽपि व्‍यवस्थितम् ।
तथा ज्ञानेन संज्ञातं नयोऽपि हिं तथाविध: ॥११॥
अर्थ – द्रव्‍यों का जिस प्रकार का स्‍वरूप है, वह लोक में व्‍यवस्थित है । ज्ञान से उसी प्रकार जाना जाता है, नय भी उसी प्रकार जानता है ।

प्रमाणनयैरधिगस: ॥त.सू.१/९॥ के अनुसार जिस प्रकार ज्ञान से पदार्थ का बोध होता है उसी प्रकार नय से भी बोध होता है ।

॥ इस प्रकार नययोजनिका का प्ररूपण हुआ ॥