+ प्रमाण -
सकलवस्‍तुग्राहकं प्रमाणं, प्रमीयते परिच्छिद्यते वस्‍तुतत्‍वं येन ज्ञानेने तत्‍प्रमाणम् ॥177॥
अन्वयार्थ : सकल वस्‍तु को ग्रहण करने वाला ज्ञान प्रमाण है । जिस ज्ञान के द्वारा वस्‍तुस्‍वरूप जाना जाता है, निश्‍चय किया जाता है, वह ज्ञान प्रमाण है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र ३४ में 'सम्‍यग्‍ज्ञानं प्रमाणम्' कहा था किन्‍तु वहां पर सम्‍यग्‍ज्ञान का स्‍वरूप नहीं बतलाया गया था । यहाँ पर प्रमाण का विषय तथा कार्य बतलाया गया है । प्रमाण का विषय सकल वस्‍तु है अर्थात् वस्‍तु का पूर्ण अंश है और नय का विषय विकल वस्‍तु अथवा वस्‍तु का एकांश है । अर्थात् सकलादेश प्रमाण और विकलादेश नय है । वस्‍तु-स्‍वरूप का यथार्थ निश्‍चय करना प्रमाण का कार्य है ।