+ निक्षेप और उसके प्रकार -
प्रमाणनययोर्निक्षेपणं आरोपणं निक्षेप:, स नामस्‍थापनादि-भेदेन चतुर्विध: ॥183॥
अन्वयार्थ : प्रमाण और नय के विषय में यथायोग्‍य नाभादिरूप से पदार्थ निक्षेपण करना अर्थात् आरोपण करना निक्षेप है । वह निक्षेप नाम, स्‍थापना; द्रव्‍य और भाव के भेद से चार प्रकार का है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

नाम, स्‍थापना, द्रव्‍य और भावरूप से जीवादि द्रव्‍यों का न्‍यास अर्थात् निक्षेप होता है ।
  • संज्ञा के अनुसार गुणरहित वस्‍तु में व्‍यवहार के लिये अपनी इच्‍छानुसार की गई संज्ञा को नाम-निक्षेप कहते हैं ।
  • काष्‍ठ-कर्म, पुस्‍तक-कर्म, चित्र-कर्म और अक्ष-निक्षेप आदि में 'यह वह है' इस प्रकार स्‍थापित करने को स्‍थापना-निक्षेप कहते हैं ।
  • जो गुणों के द्वारा प्राप्‍त हुआ था या गुणों को प्राप्‍त हुआ था अथवा जो गुणों के द्वारा प्राप्‍त किया जायगा या गुणों को प्राप्‍त होगा वह द्रव्‍य-निक्षेप है ।
  • वर्तमान पर्याय से युक्‍त द्रव्‍य भाव-निक्षेप है ।
खुलासा इस प्रकार है -- नाम-जीव, स्‍थापना-जीव, द्रव्‍य-जीव और भाव-जीव, इस प्रकार जीव पदार्थ का न्‍यास चार प्रकार से किया जाता है । कहा भी है --

णामजिणा जिणणाम, ठवणजिणा पुण जिणंदपडिमाओ ।
दव्‍वंजिणा जिणनीवा भावजिणा समवसरणत्‍था ॥
अर्थ – जिन नाम जिन का नाम-निक्षेप है । जिनेन्‍द्र भगवान् की प्रतिमा जिन की स्‍थापना-निक्षेप है । जिनेन्‍द्र का जीव जिन का द्रव्‍य-निक्षेप है । समवशरण में स्थित जिनेन्‍द्र जिन का भाव-निक्षेप है ।

नामनिक्षेप

धवल में श्री वीरसेन आचार्य ने इन निक्षेप का स्‍वरूप निम्‍न प्रकार कहा है --

नाम‍ निक्षेप-अन्‍य निमित्तों की अपेक्षा रहित किसी की 'मंगल' ऐसी संज्ञा करने को नाम-मंगल कहते हैं । नाम-निक्षेप में संज्ञा के चार निमित्त होते हैं -- जाति, द्रव्‍य, गुण और क्रिया । उन चार निमित्तों में से
  • तद्भव और साद्दश्‍य लक्षण वाले सामान्‍य को जाति कहते हैं ।
  • द्रव्‍य निमित्त के दो भेद हैं, संयोग-द्रव्‍य और समवाय-द्रव्‍य । उनमें
    • अलग अलग सत्ता रखने वाले द्रव्‍यों के मेल से जो पैदा हो, उसे संयोग-द्रव्‍य कहते हैं ।
    • जो द्रव्‍य में समवेत हो उसे समवाय-द्रव्‍य कहते हैं ।
  • जो पर्यायादिक से परस्‍पर विरूद्ध हो अथवा अविरूद्ध हो, उसे गुण कहते हैं ।
  • परिस्‍पन्‍द को क्रिया कहते हैं ।


इन चार प्रकार के निमित्तों में से
  • गौ, मनुष्‍य, घट, पट आदि जाति-निमित्तक नाम हैं ।
    • दण्‍डी, छत्री इत्‍यादि संयोग-द्रव्‍य-निमित्तक नाम है क्‍योंकि स्‍वतन्‍त्र सत्ता रखने वाले दण्‍ड आदि के संयोग से दण्‍डी आदि नाम व्‍यवहार में आते हैं ।
    • गल-गण्‍ड, काना, कुबड़ा इत्‍यादि समवाय-द्रव्‍य-निमित्तक नाम हैं, क्‍योंकि जिसके लिये 'गलगण्‍ड' इस नाम का उपयोग किया गया है उससे, गले का गण्‍ड भिन्‍न सत्ता वाला द्रव्‍य नहीं है ।
  • कृष्‍ण, रूधिर इत्‍यादि गुण-निमित्तक नाम हैं, क्‍योंकि कृष्‍ण आदि गुणों के निमित्त से उन गुण वाले द्रव्‍यों में ये नाम व्‍यवहार में आते हैं ।
  • गायक, नर्तक इत्‍यादि क्रिया-निमित्तक नाम हैं, क्‍योंकि गाना, नाचना आदि क्रियाओं के निमित्त से गायक, नर्तक आदि नाम व्‍यवहार में आते हैं ।
इस तरह जाति आदि इन चार निमित्तों को छोड़कर संज्ञा की प्रवृत्ति में अन्‍य कोई निमित्त नहीं है ।

स्‍थापना निक्षेप

किसी नाम को धारण करने वाले दूसरे पदार्थ की 'वह यह है' इस प्रकार स्‍थापना करने को स्‍थापना-निक्षेप कहते हैं । स्‍थापना-निक्षेप दो प्रकार का है - सद्भाव स्‍थापना और असद्भाव स्‍थापना । जिस वस्‍तु की स्‍थापना की जाती है उसके आकार को धारण करने वाली वस्‍तु में सद्भाव-स्‍थापना समझना चाहिये तथा जिस वस्‍तु की स्‍थापना की जाती है उसके आकार से रहित वस्‍तु में असद्भाव स्‍थापना समझना चाहिये ।

द्रव्‍य निक्षेप

आगे होने वाली पर्याय को ग्रहण करने के सन्‍मुख हुए द्रव्‍य को (उस पर्याय की अपेक्षा) द्रव्‍यनिक्षेप कहते हैं अथवा वर्तमान पर्याय की विवक्षा से रहित द्रव्‍य को द्रव्‍यनिक्षेप कहते हैं ।

नोट - इसके भेद प्रतिभेदों का विशद कथन ध.१ में है

भाव निक्षेप

वर्तमान पर्याय से युक्‍त द्रव्‍य को भाव कहते है ।

नोट - इसके भेदों का विशेष कथन ध.१ में है

॥ इस प्रकार निक्षेप की व्‍युत्‍पत्ति का कथन हुआ ॥