+ शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक-नय -
शुद्धद्रव्‍यमेवार्थः प्रयोजनमस्‍येति शुद्धद्रव्‍यार्थिकः ॥185॥
अन्वयार्थ : शुद्ध-द्रव्‍य जिसका प्रयोजन है वह शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र ४७, ४८, ४९ में शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय के भेदों का कथन है । धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य, काल-द्रव्‍य ये चारों द्रव्‍य तो नित्‍य-शुद्ध हैं । कर्म-बंध के कारण संसारी-जीव अशुद्ध है, और कर्म-बंध से मुक्‍त हो जाने पर सिद्ध-जीव शुद्ध हैं । इसी प्रकार बंध के कारण द्वि-अणुक आदि स्‍कंध पुद्गल-द्रव्‍य अशुद्ध हैं और बंध-रहित पुद्गल-परमाणु शुद्ध-पुद्गल द्रव्‍य है । कहा भी है --



सिद्धरूपः स्‍वभावपर्यायः नरनारकादिरूपा विभावपर्यायाः । ..........शुद्धपरमाणुरूपे-णवस्‍थानं स्‍वभावद्रव्‍यपर्यायः.....द्वयणुकादिस्‍कंधरूपेण परिणमनं विभावद्रव्‍यपर्यायाः
पं.का.५.टी.॥
अतः शुद्ध-द्रव्‍यार्थिक नय के विषय धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य, काल-द्रव्‍य, सिद्ध जीव-द्रव्‍य और पुद्गल-परमाणु हैं ।