
मुख्तार :
स्वभाव-युक्त भी द्रव्य है, गुण-युक्त भी द्रव्य है, पर्याय-युक्त भी द्रव्य है, ऐसा कहा जाता है । इसलिये द्रव्यत्व के कारण कहीं पर भी जाति नहीं आती तथापि जो नय स्वभाव-विभाव रूप से अस्ति-स्वभाव, नास्ति-स्वभाव, नित्य-स्वभाव इत्यादि अनेक स्वभावों को एक-द्रव्यरूप से प्राप्त करके भिन्न-भिन्न नामों की व्यवस्था करता है, वह अन्वय-द्रव्यार्थिकनय है । इस नय का विशद कथन सूत्र ५३ के विशेषार्थ में किया जा चुका है । |