+ अन्‍वय-द्रव्‍यार्थिक-नय -
सामान्‍यगुणादयोऽन्‍वयरूपेण द्रव्‍यं द्रव्‍यमिति व्‍यवस्‍थापयतीति अन्‍वयद्रव्‍यार्थिकः ॥187॥
अन्वयार्थ : जो नय सामान्‍य गुण, पर्याय, स्‍वभाव को-यह द्रव्‍य है, यह द्रव्‍य है, इस प्रकार अन्‍वयरूप से द्रव्‍य की व्‍यवस्‍था करता है वह अन्‍वय-द्रव्‍यार्थिक-नय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

स्‍वभाव-युक्‍त भी द्रव्‍य है, गुण-युक्‍त भी द्रव्‍य है, पर्याय-युक्‍त भी द्रव्‍य है, ऐसा कहा जाता है । इसलिये द्रव्‍यत्‍व के कारण कहीं पर भी जाति नहीं आती तथापि जो नय स्‍वभाव-विभाव रूप से अस्ति-स्‍वभाव, नास्ति-स्‍वभाव, नित्‍य-स्‍वभाव इत्‍यादि अनेक स्‍वभावों को एक-द्रव्‍यरूप से प्राप्‍त करके भिन्‍न-भिन्‍न नामों की व्‍यवस्‍था करता है, वह अन्‍वय-द्रव्‍यार्थिकनय है ।

इस नय का विशद कथन सूत्र ५३ के विशेषार्थ में किया जा चुका है ।