पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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परमभाव-ग्राहक द्रव्यार्थिक-नय
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परमभावग्रहणमर्थः प्रयोजनमस्येति परमभावग्राहकः ॥190॥
अन्वयार्थ :
परमभाव ग्रहण करना जिसका प्रयोजन है वह परमभाव-ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है ।
मुख्तार
मुख्तार :
इस नय का विशेष कथन सूत्र ५६ में है ।
॥ इस प्रकार द्रव्यार्थिक नय की व्युत्पत्त्िा का कथन हुआ ॥