+ व्‍यवहार-नय -
संग्रहेण गृहीतार्थस्‍य भेदरूपतया वस्‍तुव्‍यवह्रियत इति व्‍यवहारः ॥198॥
अन्वयार्थ : संग्रह नय से ग्रहण किये हुए पदार्थ को भेदरूप से व्‍यवहार करता है, ग्रहण करता है, वह व्‍यवहार नय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

इसका विशेष कथन सूत्र ४१ के विशेषार्थ में है तथा इस नय के भेदों का कथन सूत्र ७१ व ७२ में है ।