
परस्परेणाभिरूढाः समभिरूढाः । शब्दभेदेऽप्यर्थभेदो-नास्तिः । यथा शक्र इन्द्रः पुरन्दर इत्यादयः समभिरूढाः ॥201॥
अन्वयार्थ : परस्पर में अभिरूढ शब्दों को ग्रहण करने वाला नय समभिरूढ नय है । इस नय के विषय में शब्द-भेद होने पर भी अर्थ-भेद नहीं है । जैसे -- शक्र, इन्द्र, पुरन्दर ये तीनों ही शब्द देवराज के पर्यायवाची होने से देवराज में ही अभिरूढ है ।
मुख्तार
मुख्तार :
इस नय का विशेष कथन सूत्र ४१ के विशेषार्थ में है तथा सूत्र ७८ में भी है ।
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