
गुणगुणिनोः संज्ञादिभेदात् भेदकः सद्भूतव्यवहारः ॥206॥
अन्वयार्थ : संज्ञा, संख्या, लक्षण और प्रयोजन के भेद से जो नय गुण-गुणी में भेद करता है वह सद्भूत व्यवहारनय है ।
मुख्तार
मुख्तार :
सूत्र ४४ के विशेषार्थ में इसका विशेष कथन है और भेदों का कथन सूत्र ८१-८२-८३ में है ।
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