
1. द्रव्ये द्रव्योपचारः, 2. पर्याये पर्यायोपचारः, 3. गुणे गुणोपचारः, 4. द्रव्ये गुणोपचारः, 5. द्रव्ये पर्यायोपचारः, 6. गुणे द्रव्योपचारः, 7. गुणे पर्यायोपचारः, 8. पर्याये द्रव्योपचारः, 9. पर्याये गुणोपचार इति नवविधोपचारः असद्भूतव्यवहारस्यार्थो द्रष्टव्यः ॥210॥
अन्वयार्थ : १. द्रव्य में द्रव्य का उपचार, २. पर्याय में पर्याय का उपचार, ३. गुण में गुण का उपचार, ४. द्रव्य में गुण का उपचार, ५. द्रव्य में पर्याय का उपचार, ६. गुण में द्रव्य का उपचार, ७. गुण में पर्याय का उपचार, ८. पर्याय में द्रव्य का उपचार, ९. पर्याय में गुण का उपचार, ऐसे नौ प्रकार का उपचार असद्भूत व्यवहारनय का विषय है ।
मुख्तार
मुख्तार : यद्यपि सूत्र ४४ के विशेषार्थ में इन नौ प्रकार के उपचारों का विशेष कथन है तथापि संस्कृत नयचक्र के/४५ के अनुसार कथन किया जाता है --
- द्रव्य में जीव द्रव्य का उपचार --
शरीरमपि यो जीवं प्राणिनो वदति स्फुटं ।;;असद्भूतो विजातीयो ज्ञातव्यो मुनिवाक्यतः ॥१॥
अर्थ – प्राणी के शरीर को ही जीव कहना -- यहाँ विजाति पुद्गल द्रव्य में विजाति जीव द्रव्य का उपचार किया गया है । यह असद्भूतव्यवहार नय का विषय है ।
- गुण में गुण का उपचार --
मूर्तमेवमिति ज्ञानं कर्मणा जनितं यतः ।;;यदि नैव भवेन्मूर्त मूर्तेन स्खलितं कुतः ॥२॥
अर्थ – मतिज्ञान मूर्तिक है क्योंकि कर्मजनित है। यदि ज्ञान मूर्त न होता तो मूर्त पवार्थ से स्खलित क्यों होता । यह विजातीय गुण में विजातीय गुण का उपचार है जो असद्भूत व्यवहारनय का विषय है ।
- पर्याय में पर्याय का उपचार --
प्रतिर्बिबं समालोक्य यस्य चित्रादिषु स्थितं ।;;तदेव तच्च यो ब्रूयाद्सद्भूतोह्युदाहृतः ॥३॥
अर्थ – किसी के प्रतिर्बिब को देखकर, जिसका वह चित्र हो उसको उस चित्ररूप बतलाना असद्भूतव्यवहार नय का उदाहरण है। यहाँ पर्याय में पर्याय का उपचार है।
- द्रव्य में गुण का उपचार --
जीवाजीवमपि ज्ञेयं ज्ञानज्ञानस्य गोचरात् ।;;उच्यते येन लोकेस्मिन् सोऽसद्भूतो निगद्यते ॥४॥
अर्थ – ज्ञान का विषय होने से जीव-अजीव-ज्ञेय ज्ञान है, लोक में ऐसा कहा जाता है। यह असद्भूतव्यवहार नय है । द्रव्य में गुण का उपचार किया गया है ।
- द्रव्य में पर्याय का उपचार --
अणुरेकप्रदेशोपि येनानेकप्रदेशकः ।;;वाच्यो भवेद्सद्भूतो व्यवहारः स भण्यते ॥५॥
अर्थ – जो नय एकप्रदेशी परमाणु को भी बहुप्रदेशी कहता है वह असद्भूत व्यवहारनय है । यहाँ द्रव्य में पर्याय का उपचार किया गया है ।
- गुण में द्रव्य का उपचार --
स्वजातीयगुणे द्रव्यं स्वजातेरूपचारतः ।;;रूपं च द्रव्यमाख्याति श्वेतः प्रसादको यथा ॥६॥
अर्थ – स्वजाति गुण में स्वजाति द्रव्य का उपचार । जैसे-सफेद महल । यहाँ पर रूप गुण में महल द्रव्य का उपचार किया गया है।
- गुण में पर्याय का उपचार --
ज्ञानमेव हि पर्यायं पर्याये परिणामिवत् ।;;गुणोपचारपर्यायो व्यवहारो वदत्यसो ॥७॥
अर्थ – पर्याय में परिणमन करने वाले की तरह ज्ञान ही पर्याय है । यह गुण में पर्याय का उपचार है । यह असद्भूत व्यवहार नय का विषय है ।
- पर्याय में द्रव्य का उपचार --
उपचारो हि पर्याये येन द्रव्यस्य सूच्यते ।;;असद्भूत: समाख्यातः स्कंघेपि द्रव्यता यथा ॥८॥
अर्थ – पर्याय में द्रव्य का उपचार । जैसे -- स्कंध भी द्रव्य है । यह भी असद्भूत-व्यवहार नय है ।
- पर्याय में गुण का उपचार --
यो दृष्ट्वा देहसंस्थानमाचष्टे रूपमुत्तमं ।;;व्यवहारो असद्भूत: स्वजातीयसंज्ञकः ॥९॥
अर्थ – पर्याय में गुण का आरोप करना भी असद्भूत व्यवहार है । जैसे -- देह के संस्थान को देखकर यह कहा जाता है कि यह उत्तम रूप है ।
इस प्रकार उपर्युक्त नौ प्रकार का उपचार भी असद्भूत व्यवहार नय का विषय है ।
उपचरित असद्भूत व्यवहार का नय का कथन --
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