पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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उपचार पृथक् नय नहीं
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उपचारः पृथग् नयो नास्तीति न पृथक् कृतः ॥211॥
अन्वयार्थ :
उपचार पृथक् नय नहीं है अतः उसके पृथक् रूप से नय नहीं कहा है ।
मुख्तार
मुख्तार :
व्यवहार नय के तीन भेद कहे हैं १. सद्भूत व्यवहार, २. असद्भूत व्यवहार, ३. उपचरित असद्भूत व्यवहार । इस तीसरे भेद में उपचार नय का अन्तर्भाव हो जाता है ।