+ सम्‍बन्‍ध के प्रकार -
सोऽपि सम्‍बन्‍धोऽविनाभावः, संश्‍लेषः सम्‍बन्‍धः, परिणामपरिणामिसम्‍बन्‍धः, श्रद्धाश्रद्धेयसम्‍बन्‍धः, ज्ञानज्ञेयसम्‍बन्‍धः, चारित्रचर्यासम्‍बन्‍धश्‍चेत्‍यादि, सत्‍यार्थः असत्‍यार्थः सत्‍यासत्‍यार्थ-श्‍चेत्‍युपचरितासद्भूतव्‍यवहारनयस्‍यार्थः ॥213॥
अन्वयार्थ : वह सम्‍बन्‍ध भी सत्‍यार्थ अर्थात् स्‍वजाति पदार्थों में, असत्‍यार्थ अर्थात् विजाति पदार्थों में तथा सत्‍यासत्‍यार्थ अर्थात् स्‍वजाति-विजाति, उभय पदार्थों में निम्‍न प्रकार का होता है-१. अविनाभावसम्‍बन्‍ध, २. संश्‍लेष सम्‍बन्‍ध, ३. परिणामपरिणामिसम्‍बन्‍ध, ४. श्रद्धाश्रद्धेयसम्‍बन्‍ध, ५. ज्ञानज्ञेय-सम्‍बन्‍ध, ६. चारित्रचर्या सम्‍बन्‍ध इत्‍यादि ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

इस नय का कथन सूत्र ८८ में भी है। इत्‍यादि से निमित्त-नैमित्तिक सम्‍बन्‍ध, स्‍व-स्‍वामी सम्‍बन्‍ध, वाच्‍य-वाचक सम्‍बन्‍ध, प्रमाण-प्रमेय सम्‍बन्‍ध, बंध्‍य-बंधक सम्‍बन्‍ध, वध्य-घातक सम्‍बन्‍ध आदि को भी ग्रहण कर लेना चाहिये । ये सम्‍बन्‍ध कथंचित यथार्थ है । यदि इनको यथार्थ न माना जाये तो संसार का, मोक्ष का, मोक्ष-मार्ग का, ज्ञान का और ज्ञेयों का, प्रमाण और प्रमेयों अर्थात् द्रव्‍यों का भी अभाव हो जायगा । सर्वज्ञ का भी अभाव हो जायगा । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है -

तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्‍यग्‍दर्शनम् ॥त.सू.१/२॥ सर्वद्रव्‍यपर्यायेषु-केवलस्‍य ॥१/२९॥ असद्भिदानमनृतम ॥७१४॥ अदत्तादानं स्‍तेयम् ॥७/१५॥ मै‍थुनमब्रह्म ॥७/१६॥

  • जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष इन सात तत्त्वों का श्रद्धान सम्‍यग्‍दर्शन है जो मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी है । यदि इन सात तत्त्वों के साथ श्रद्धान-श्रद्धेय सम्‍बन्‍ध यथार्थ न माना जाय तो सम्‍यग्‍दर्शन के लक्षण का अभाव हो जायगा और लक्षण के अभाव में लक्ष्‍य रूप सम्‍यग्‍दर्शन का अभाव हो जायगा । सम्‍यग्‍दर्शन के अभाव में मोक्षमार्ग का भी अभाव हो जायगा ।

  • यदि बंध्‍य-बंधक सम्‍बन्‍ध को यथार्थ न माना जाय तो बंध-तत्त्व का अभाव हो जायगा । बंध के अभाव में संसार व निर्जरा-तत्त्व और मोक्ष-तत्त्व का भी अभाव हो जायगा, क्‍योंकि बंध अवस्‍था का नाम संसार है, बंधे हुए कर्मों का एक देश झड़ना निर्जरा है, तथा बंध से मुक्‍त होने का नाम मोक्ष है ।

    मुक्‍तश्‍चेत् प्राक्भवेद् बन्‍धो नो बन्‍धो मोचनं कथम् ।;;अबंधे मोचनं नैव मुञ्चेरर्थो निरर्थकः ॥ (वृ.द्र.सं.५७.टी)

    अर्थ – यदि जीव मुक्‍त है, तो पहले इस जीव के बंध अवश्‍य होना चाहिये, यदि बंध न हो तो मोक्ष कैसे हो सकता है?

  • यदि ज्ञेय-ज्ञायक सम्‍बन्‍ध यथार्थ न हो तो 'सर्वद्रव्‍यपर्यायेषु केवलस्‍य' यह सूत्र निरर्थक हो जायगा और इस सूत्र के निरर्थक हो जाने पर सर्वज्ञ का अभाव हो जायगा । ज्ञेय-ज्ञायक सम्‍बन्‍ध के अभाव में पदार्थों का ज्ञान नहीं हो सकेगा और द्रव्‍यों में से 'प्रमेयत्व' गुण का अभाव हो जायगा । ज्ञेय व प्रमेय के अभाव में ज्ञान व प्रमाण का भी अभाव हो जायगा ।
  • यदि वाच्‍य-वाचक सम्‍बन्‍ध को यथार्थ न माना जावे तो 'असद्भिदानमनृतम्' सूत्र निरर्थक हो जायगा । अथवा मोक्ष-मार्ग के उपदेश तथा मोक्ष-मार्ग का ही अभाव हो जायगा ।

    शब्‍दात्‍पदप्रसिद्धिः पदसिद्धेरर्थेनिर्णयो भवति ।;;अर्थात्तत्‍वज्ञानं तत्त्वज्ञानात्‍परं श्रेयः ॥ (ध.१/१०)

    अर्थ – शब्‍द से पद की सिद्धि होती है, पद की सिद्धि से उसके अर्थ का निर्णय होता है, अर्थ-निर्णय से तत्त्वज्ञान होता है और तत्त्वज्ञान से परम कल्‍याण होता है ।

  • यदि स्‍वस्‍वामी-सम्‍बन्‍ध यथार्थ न माना जाय तो 'अदत्तादानं स्‍तेयम्' यह सूत्र निरर्थक हो जायगा, क्‍योंकि जब कोई स्‍वामी ही नहीं तो आहारादिक दान देने का किसी को अधिकार भी नहीं रहेगा । अत: दान, दातार, देय और पात्र सभी का लोप हो जायगा । इससे मोक्षमार्ग का भी अभाव हो जायगा ।

  • पति-पत्‍नी सम्‍बन्‍ध यथार्थ न माना जाय तो स्‍वदार-सन्‍तोष व्रत तथा पर-स्‍त्री-त्‍याग व्रत का अभाव हो जायगा ।


इस प्रकार उपचरित असद्भूत-व्‍यवहारनय का विषय कथंचित् यथार्थ है, सर्वथा अयथार्थ नहीं है । यदि सर्वथा, एकान्‍त से अनुपचरित को यथार्थ माना जाय और उपचरित को अयथार्थ मानकर छोड़ दिया जाय तो परज्ञता का विरोध हो जायगा, ऐसा सूत्र १४९ में कहा है ।

॥ इस प्रकार आगम नय का निरूपण हुआ ॥