पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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अध्यात्म के नय
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पुनरप्यध्यात्मभाषया नया उच्यन्ते ॥214॥
अन्वयार्थ :
फिर भी अध्यात्म-भाषा से नयों का कथन करते हैं ।
मुख्तार