पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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भेद
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तावन्मूलनयौ द्वौ निश्चयो व्यवहारश्च ॥215॥
अन्वयार्थ :
नयों के मूल भेद दो हैं- एक निश्चय नय और दूसरा व्यवहार नय ।
मुख्तार