
मुख्तार :
गुण और गुणी में तथा पर्याय-पर्यायी आदि में भेद न करके, जो नय वस्तु को ग्रहण करता है वह निश्चयनय है। गुण-गुणी के भेद द्वारा अथवा पर्याय-पर्यायी के भेद द्वारा, जो नय वस्तु को ग्रहण करता है वह व्यवहार नय है । गाथा ४ में कहा गया कि निश्चय नय का हेतु द्रव्यार्थिक नय है और व्यवहार नय का हेतु पर्यायार्थिक नय है । |