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तत्र निश्‍चयतयोऽयेदविजायो, व्‍यवहारो भेदविषयः ॥216॥
अन्वयार्थ : निश्‍चय नय का विषय अभेद है । व्‍यवहार नय का विषय भेद है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

गुण और गुणी में तथा पर्याय-पर्यायी आदि में भेद न करके, जो नय वस्‍तु को ग्रहण करता है वह निश्‍चयनय है। गुण-गुणी के भेद द्वारा अथवा पर्याय-पर्यायी के भेद द्वारा, जो नय वस्‍तु को ग्रहण करता है वह व्‍यवहार नय है । गाथा ४ में कहा गया कि निश्‍चय नय का हेतु द्रव्‍यार्थिक नय है और व्‍यवहार नय का हेतु पर्यायार्थिक नय है ।