
मुख्तार :
जैसे वृक्ष एक है, उसमें लगी हुई शाखायें यद्यपि भिन्न है तथापि वृक्ष ही हैं । उसी प्रकार सद्भूत व्यवहारनय गुण / गुणी को भेद करके कथन करता है । गुण-गुणी का संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा भेद है किन्तु प्रदेश / सत्ता भिन्न नहीं है इसलिये एक वस्तु है । उस एक वस्तु में गुण-गुणी का संज्ञादि की अपेक्षा भेद करना सद्भूत व्यवहारनय का विषय है । जैसे -- जीव के ज्ञान, दर्शनादि । |