काल: कलिर्वा कलुषाऽऽशयो वा
श्रोतुः प्रवक्तुर्वचनाऽनयो वा ।
त्वच्छासनैकाधिपतित्व-लक्ष्मी-
प्रभुत्व-शक्तेरपवाद-हेतुः ॥5॥
अन्वयार्थ : [त्वच्छासनैकाधिपतित्व-लक्ष्मी-प्रभुत्व-शक्तेः] आपके शासन में एकाधिपतित्व रूप लक्ष्मी की प्रभुता की जो शक्ति है उसके [अपवादहेतुः] अपवाद का कारण [कलिः कालः वा] या तो कलिकाल है [वा] या [श्रोतुः] श्रोता का [कलुषाऽऽशयः] कलुषित आशय है [वा] या [प्रवक्तुः] प्रवक्ता का [वचनाऽनयः] नय-निरपेक्ष वचन व्यवहार है ।
वर्णी
वर्णी :
काल: कलिर्वा कलुषाऽऽशयो वा
श्रोतुः प्रवक्तुर्वचनाऽनयो वा ।
त्वच्छासनैकाधिपतित्व-लक्ष्मी-
प्रभुत्व-शक्तेरपवाद-हेतुः ॥5॥
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