+ जिनदेव का शासन -
दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं
नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽञ्जसार्थम् ।
अधृष्यमन्यैरखिलै: प्रवादै-
र्जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥6॥
अन्वयार्थ : [जिन] हे (वीर) जिन! [त्वदीयं मतम्] आपका मत (अनेकान्तात्मक शासन) [दया-दम-त्याग-समाधि्-निष्ठम्] दया (अहिंसा), दम (इन्द्रियदमन, संयम), त्याग (परिग्रह-त्यजन), समाधि् (प्रशस्त ध्यान) से निष्ठ (पूर्ण) है। [नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽञ्जसार्थम्] नय और प्रमाण से सम्यक् वस्तुतत्त्व (पदार्थों) को बिल्कुल स्पष्ट (सुनिश्चित) करने वाला है और [अन्यैः अखिलैः प्रवादैः] (अनेकान्तवाद से भिन्न) अन्य सभी प्रवादों से [अधृष्यम्] अबाधित (जीता नहीं जा सकने वाला) होने से [अद्वितीयम्] अद्वितीय है।

  वर्णी 

वर्णी :

दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं

नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽञ्जसार्थम् ।

अधृष्यमन्यैरखिलै: प्रवादै-

र्जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥6॥