+ एकान्त मतों की सिद्धि स्वभाव हेतु से संभव नहीं है -- -
अहेतुकत्वं-प्रथित: स्वभाव-
स्तस्मिन्‌ क्रियाकारकविभ्रम: स्यात्‌ ।
आबालसिद्धेर्विविधार्थसिद्धि-
र्वादान्तरं किं तदसूयतां ते ॥9॥
अन्वयार्थ : (यदि नित्य पदार्थों में विकारी होने का) [स्वभाव:] स्वभाव [अहेतुकत्वं-प्रधित:] बिना किसी हेतु के ही प्रसिद्ध है (तो ऐसी दशा में) [तस्मिन्‌] उसमें [क्रियाकारक-विभ्रम:] क्रिया और कारक का विभ्रम [स्थात्‌] ठहरता है । यदि [आबालसिद्धे:] आबाल-सिद्धि (बालगोपाल में सिद्धि) रूप हेतु से [विविधार्थ-सिद्धि:] विविधार्थ (अनेक अर्थों) की सिद्धि के रूप में स्वभाव प्रथित (प्रसिद्ध) है तो (हे वीर भगवन्‌!) [ते] आपके [असूयतां] विद्वेषियों के लिये [किं तत्‌ वादान्तरं] क्या यह वादान्तर (दूसरा वाद) नहीं होगा?

  वर्णी 

वर्णी :

अहेतुकत्वं-प्रथित: स्वभाव-

स्तस्मिन्‌ क्रियाकारकविभ्रम: स्यात्‌ ।

आबालसिद्धेर्विविधार्थसिद्धि-

र्वादान्तरं किं तदसूयतां ते ॥9॥