तथा न तत्कारण-कार्य-भावो
निरवन्या: केन समानरूपा: ।
असत्खपुष्पं न हि हेत्वपेक्षं
दृष्टं न सिद्धयत्युभयोरसिद्धम् ॥12॥
अन्वयार्थ : [तथा] उसी प्रकार [तत्कारणकार्यभावः] कारण-कार्य भाव भी [न] नहीं बनता है । [निरन्वयाः] सर्वथा विनश्वर को, [केन समानरूपाः] किसके साथ समानरूप कहा जाये? [असत् खपुष्पम्] असत् को आकाश-पुष्प के समान [न हि हेत्वपेक्षम्] हेतु की अपेक्षा से न ही [दृष्टम् न सिद्ध्यति] देखा जाता है और न वह सिद्ध होता है । [उभयोः असिद्धम्] वादी-प्रतिवादी दोनों के द्वारा असिद्ध है ।
वर्णी
वर्णी :
तथा न तत्कारण-कार्य-भावो
निरवन्या: केन समानरूपा: ।
असत्खपुष्पं न हि हेत्वपेक्षं
दृष्टं न सिद्धयत्युभयोरसिद्धम् ॥12॥
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