नैवाऽस्ति हेतु: क्षणिकात्मवादे
न सन्नसन्वा विभवादकस्मात् ।
नाशोदयैकक्षणता च दृष्टा संतान-
भिन्न-क्षणयोरभावात् ॥13॥
अन्वयार्थ : [क्षणिकात्मवादे] क्षणिकात्मवाद में [हेतुः नैव अस्ति] हेतु बनता ही नहीं है। [विभवात्] इससे विभव का प्रसंग आने से और [अकस्मात्] अकस्मात् कार्योत्पत्ति का प्रसंग आने से, [न सत्] न सत् [वा] और [न असत्] न असत् हेतु बनता है। तथा [सन्तान-भिन्न-क्षणयोः] सन्तान के भिन्न क्षणों में [नाशोदयैकक्षणता च अभावात् दृष्टा] नाश और उदय की एक-क्षणता का अभाव देखा जाता है।
वर्णी
वर्णी :
नैवाऽस्ति हेतु: क्षणिकात्मवादे
न सन्नसन्वा विभवादकस्मात् ।
नाशोदयैकक्षणता च दृष्टा संतान-
भिन्न-क्षणयोरभावात् ॥13॥
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