कृत-प्रणाशाऽकृत कर्मभोगौ
स्यातामसञ्चेतितकर्म च स्यात् ।
आकस्मिकेऽर्थे प्रलय स्वभावे
मार्गो न युक्तो वधकश्च न स्यात् ॥14॥
अन्वयार्थ : [अर्थे प्रलयस्वभावे] यदि पदार्थ को प्रलय-स्वभावरूप [आकस्मिके] आकस्मिक माना जाये तो [कृतप्रणाशाऽकृतकर्मभोगौ] इससे कृत-कर्म के भोग के विनाश का और अकृत-कर्म के फल को भोगने का [स्याताम्] प्रसंग आयेगा । [असञ्चेतितकर्म च] साथ ही, कर्म भी अभुक्त [स्यात्] ठहरेगा । [मार्गः न युक्तः] कोई मार्ग भी युक्त नहीं रहेगा [वधकः च न स्यात्] और कोई किसी का वध करने वाला भी नहीं रहता।
वर्णी
वर्णी :
कृत-प्रणाशाऽकृत कर्मभोगौ
स्यातामसञ्चेतितकर्म च स्यात् ।
आकस्मिकेऽर्थे प्रलय स्वभावे
मार्गो न युक्तो वधकश्च न स्यात् ॥14॥
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