+ उपचार से भी क्षणिक पक्ष में दोष -
न बंध-मोक्षौ क्षणिकैक-सस्थौ
न संवृति: साऽपि मृषा-स्वभावा ।
मुख्यादृते गौण-विधिर्न दृष्टो
विभ्रांत-दृष्टिस्तव दृष्टितोऽन्या ॥15॥
अन्वयार्थ : (पदार्थों के प्रलय-स्वभावरूप आकस्मिक होने पर) [क्षणिकैकसंस्थौ] क्षणिक एक (चित्त) में संस्थित के [बन्धमोक्षौ न] बन्ध और मोक्ष भी नहीं बनते [मृषास्वभावा] मिथ्या-स्वभावी [न संवृतिः साऽपि] उपचार भी क्षणिक एक-चित्त में बंध्-मोक्ष की व्यवस्था करने में समर्थ नहीं है। और [गौण विधिः] गौण-विधि [मुख्यादृते] मुख्य के बिना [न दृष्टः] देखी नहीं जाती है । [तव] आपकी (स्याद्वादरूपिणी अनेकान्त) [दृष्टितः] दृष्टि से [अन्या] भिन्न (जो दूसरी दृष्टि है) [विभ्रान्तदृष्टिः] वह मिथ्या दृष्टि है ।

  वर्णी 

वर्णी :

न बंध-मोक्षौ क्षणिकैक-सस्थौ

न संवृति: साऽपि मृषा-स्वभावा ।

मुख्यादृते गौण-विधिर्न दृष्टो

विभ्रांत-दृष्टिस्तव दृष्टितोऽन्या ॥15॥