+ क्षणिकैकान्त में निर्विकल्प-बुद्धिभूत स्वपक्ष ही बाधित -
न शास्तृशिष्यादिविधिव्यवस्था,
विकल्पबुद्धिर्वितथाऽखिला चेत् ।
अतत्त्वतत्त्वादिविकल्पमोहे,
निमज्जतां वीतविकल्पधी: का ? ॥17॥
अन्वयार्थ : (चित्तों के प्रतिक्षण भंगुर निरन्वय-विनष्ट होने पर) [शास्तृ-शिष्यादि-विधि-व्यवस्था] शास्ता और शिष्यादि के स्वभाव-स्वरूप की भी कोई व्यवस्था [न] नहीं बनती। [अखिला विकल्पबुद्धिः] 'यह सब विकल्प-बुद्धि है और [चेत् वितथा] यह (विकल्प-बुद्धि) सारी मिथ्या होती है।' ऐसा कहने वालों (बौद्धों) के यहाँ, जो (स्वयं) [अतत्त्वतत्त्वादि-विकल्प-मोहे] अतत्त्व और तत्त्व आदि के विकल्पों के मोह में [निमज्जतां ] डूबे हुए हैं उनके [वीतविकल्पधी:] निर्विकल्प-बुद्धि [का] कैसी?

  वर्णी 

वर्णी :

न शास्तृशिष्यादिविधिव्यवस्था,

विकल्पबुद्धिर्वितथाऽखिला चेत् ।

अतत्त्वतत्त्वादिविकल्पमोहे,

निमज्जतां वीतविकल्पधी: का ? ॥17॥