अनर्थिका साधनसाध्यधीश्चेद्,
विज्ञानमात्रस्य न हेतुसिद्धि: ।
अथार्थवत्त्वं व्यभिचारदोषो,
न योगिगम्यं परवादिसिद्धम् ॥18॥
अन्वयार्थ : [चेत्] यदि [साधन-साध्यधीः] साधन-साध्य की बुद्धि [अनर्थिका] निष्प्रयोजनीय है तो [विज्ञानमात्रस्य] विज्ञानमात्र तत्त्व को सिद्ध करने के लिये जो [हेतुसिद्धिः] हेतु दिया जाता है उसकी सिद्धि [न] नहीं बनती । [अथ] यदि [अथार्थवत्त्वं] अर्थवती है तो इसी से प्रस्तुत हेतु के [व्यभिचारदोषः] व्यभिचार दोष आता है। यदि विज्ञानमात्र तत्त्व को [योगिगम्यम्] योगिगम्य कहा जाये तो [परवादिसिद्धं न] यह बात परवादियों को सिद्ध अथवा उनके द्वारा मान्य नहीं है ।
वर्णी
वर्णी :
अनर्थिका साधनसाध्यधीश्चेद्,
विज्ञानमात्रस्य न हेतुसिद्धि: ।
अथार्थवत्त्वं व्यभिचारदोषो,
न योगिगम्यं परवादिसिद्धम् ॥18॥
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