विद्याप्रसूत्यैकिल शील्यमाना
भवत्यविद्या गुरुणोपदिष्टा ।
अहो त्वदोयोक्त्यनभिज्ञमोहो,
यंजन्मने यत्तदजन्मने तत् ॥24॥
अन्वयार्थ : [गुरुणोपदिष्टा] गुरु के द्वारा उपदिष्ट [अविद्या] अविद्या भी [किल] निश्चय से [शील्यमाना] भाव्यमान हुई [विद्या-प्रसूत्यै] विद्या की उत्पत्ति के लिए [भवति] समर्थ होती है! [अहो!] आश्चर्य है कि [त्वदीयोक्त्यनभिज्ञ-मोहः] हे वीर जिन! आपकी उक्ति से अनभिज्ञ का यह कैसा मोह है वह [यत् जन्मने] जो इस जन्म के लिए कारण था [यत् तत् अजन्मने तत्] ठीक वही मोह जन्म से रहित होने के लिए भी कारण है?
वर्णी
वर्णी :
विद्याप्रसूत्यैकिल शील्यमाना
भवत्यविद्या गुरुणोपदिष्टा ।
अहो त्वदोयोक्त्यनभिज्ञमोहो,
यंजन्मने यत्तदजन्मने तत् ॥24॥
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