+ शून्यवाद की मान्यता में दोष -
अभावमात्रं परमार्थवृत्ते:
सा संवृति: सर्व विशेषशून्य ।
तस्या विशेषौ किल बंधमोक्षौ
हेत्वामनेति त्वदनाथवाक्यम् ॥25॥
अन्वयार्थ : शून्यवाद में मान्य तत्त्व व्यवस्था (पूर्वपक्ष)-[परमार्थवृत्तेः] परमार्थवृत्ति से (तत्त्व) [अभावमात्राम्] अभावमात्र है। [सा] वह (परमार्थवृत्ति) [संवृतिः] औपचारिक है और (संवृति) [सर्वविशेषशून्या] सर्वविशेषों से शून्य है तथा [तस्याः] उस (अविद्यात्मिका एवं सकलतात्त्विक-विशेष-शून्य संवृति) के भी जो [बन्धमोक्षौ] बन्ध और मोक्ष [विशेषौ] विशेष हैं, वे [किल] निश्चय से [हेत्वात्मना] हेत्वात्मक हैं। [इति] इस प्रकार यह उनका [त्वदनाथवाक्यम्] वाक्य है जिनके आप नाथ नहीं हैं।

  वर्णी 

वर्णी :

अभावमात्रं परमार्थवृत्ते:

सा संवृति: सर्व विशेषशून्य ।

तस्या विशेषौ किल बंधमोक्षौ

हेत्वामनेति त्वदनाथवाक्यम् ॥25॥