+ वस्तु सामान्य-विशेषात्मक -
व्यतीत-सामान्य-विशेष-भावाद्
विश्वाऽभिलापाऽर्थ-विकल्प-शून्यम् ।
ख पुष्पवत्स्वादसदेव तत्त्वं
प्रबुद्धतत्त्वाद्भवत: परेषाम् ॥26॥
अन्वयार्थ : हे वीर जिन! [प्रबुद्धतत्त्वात् भवतः] अनेकान्तवाद आपसे भिन्न [परेषाम्] दूसरों (एकान्तवादियों) का जो [व्यतीत-सामान्य-विशेष-भावाद्] सर्वथा सामान्य-भाव से रहित, सर्वथा विशेष-भाव से रहित तथा (परस्पर सापेक्षरूप) सामान्य-विशेष-भाव दोनों से रहित, जो [तत्त्वम्] तत्त्व है, वह (प्रकटरूप में शून्यतत्त्व न होते हुए भी) [विश्वाऽभिलापाऽर्थ-विकल्पशून्यम्] सम्पूर्ण अभिलापों (कथनों) तथा अर्थविकल्पों (अर्थ = पदार्थ) से शून्य [खपुष्पवत्] आकाश-पुष्प के समान [असत् एव स्यात्] असत् (अवस्तु) ही है ।

  वर्णी 

वर्णी :

व्यतीत-सामान्य-विशेष-भावाद्

विश्वाऽभिलापाऽर्थ-विकल्प-शून्यम् ।

ख पुष्पवत्स्वादसदेव तत्त्वं

प्रबुद्धतत्त्वाद्भवत: परेषाम् ॥26॥