अतत्स्वभावेऽप्यनयोरुपायाद᳭-
गतिर्भवेत्तौ वचनीय-गम्यौ ।
संबंधिनौ चेन्न विरोधि दृष्टं
वाच्यं यथार्थं न च दूषणं तत् ॥27॥
अन्वयार्थ : [अतत्स्वभावे अपि] अतत्-स्वभाव के होने पर भी [अनयोः] इन दोनों की [उपायात्] उपाय से [गतिः भवेत्] गति होती है , [तौ] दोनों [वचनीयगम्यौ] वचनीय हैं और गम्य हैं, साथ ही [सम्बन्धिनौ] दोनों सम्बन्धी हैं, तो [चेत् न] यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि [विरोधि् दृष्टम्] विरोध देखा जाता है । जो [यथार्थं] यथार्थ [वाच्यं] वाच्य होता है [तत्] वह [न च दूषणं] दूषणरूप नहीं होता ।
वर्णी
वर्णी :
अतत्स्वभावेऽप्यनयोरुपायाद᳭-
गतिर्भवेत्तौ वचनीय-गम्यौ ।
संबंधिनौ चेन्न विरोधि दृष्टं
वाच्यं यथार्थं न च दूषणं तत् ॥27॥
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