+ शून्यवाद में बन्ध और मोक्ष संभव नहीं -
अतत्स्वभावेऽप्यनयोरुपायाद᳭-
गतिर्भवेत्तौ वचनीय-गम्यौ ।
संबंधिनौ चेन्न विरोधि दृष्टं
वाच्यं यथार्थं न च दूषणं तत् ॥27॥
अन्वयार्थ : [अतत्स्वभावे अपि] (यदि कोई कहे कि) अतत्-स्वभाव (शून्य-स्वभाव) के होने पर भी (अभावरूप सत्स्वभाव तत्त्व के मानने पर भी) [अनयोः] इन (बन्ध् और मोक्ष) दोनों की [उपायात्] उपाय से [गतिः भवेत्] गति होती है (दोनों जाने जाते हैं), [तौ] दोनों [वचनीयगम्यौ] वचनीय हैं और गम्य हैं, साथ ही [सम्बन्धिनौ] दोनों सम्बन्धी हैं, तो [चेत् न] यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि [विरोधि् दृष्टम्] विरोध देखा जाता है (इस प्रकार सत्स्वभावरूप तत्त्व दिखाई नहीं पड़ता) । जो [यथार्थं] यथार्थ [वाच्यं] वाच्य होता है [तत्] वह [न च दूषणं] दूषणरूप नहीं होता ।

  वर्णी 

वर्णी :

अतत्स्वभावेऽप्यनयोरुपायाद᳭-

गतिर्भवेत्तौ वचनीय-गम्यौ ।

संबंधिनौ चेन्न विरोधि दृष्टं

वाच्यं यथार्थं न च दूषणं तत् ॥27॥