+ उभय एकान्त रूप अवाच्य में दोष -
उपेयतत्त्वाऽनभिलाप्यताव,
दुपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात् ।
अशेषतत्त्वाऽनभिलाप्यतायां,
द्विषां भवद्युक्त्यभिलाप्यताया: ॥28॥
अन्वयार्थ : (हे वीर जिन!) [भवद् युक्त्यभिलाप्यतायाः] आपकी युक्ति (स्याद्वाद नीति) के वाच्य के [द्विषां] जो द्वेषी हैं, (उनके मत में) [अशेष तत्त्वाऽनभिलाप्यतायां] 'सम्पूर्ण तत्त्व अवाच्य है', [उपेय-तत्त्वाऽनभिलाप्यतावत्] उपेय-तत्त्व की अवाच्यता के समान [उपाय-तत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात्] उपाय-तत्त्व भी सर्वथा अवाच्य हो जाता है ।

  वर्णी 

वर्णी :

उपेयतत्त्वाऽनभिलाप्यताव,

दुपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात् ।

अशेषतत्त्वाऽनभिलाप्यतायां,

द्विषां भवद्युक्त्यभिलाप्यताया: ॥28॥