+ संग्रहनय की सत्ता -
दव्वट्ठियनयपयडी सुद्धा संगहपरूवणाविसओ ।
पडिरूवे पुण वयणत्थनिच्छओ तस्स ववहारो ॥४॥
द्रव्यार्थिकनयप्रकृतिः शुद्धा संग्रहप्ररूपणाविषयः ।
प्रतिरूपे पुनर्वचनार्थनिश्चयस्य तस्य व्यवहार: ॥4॥
अन्वयार्थ : [संगहपरूवणाविसओ] संग्रह (नय की) प्ररूपणा (का) विषय [सुद्धा] शुद्ध [दव्वट्ठियणयपयडी] द्रव्यार्थिक नय (की) प्रकृति है [पडिरूवे] प्रतिरूप में (प्रत्येक वस्तु-रूप में) [पुण] फिर [वयणत्थ] वचन के अर्थ का [णिच्छोओ] निश्चय [तस्स] उस (संग्रह नय) का [ववहारो] व्यवहार है ।
Meaning : The fundamental nature of Dravyastika in its extreme form is what is called Sangraha Naya and limited generalizations as regards particular things come under the head of Vyavahara Naya.

  विशेष