+ पर्यायार्थिकनय का मूल -
मूलणिमेणं पज्जवणयस्स उज्जुसुयवयणविच्छेदो ।
तस्स उ सहाईआ साहपसाहा सुहुमभेया ॥5॥
मूलनिमानं (स्थानं) पर्यवनयस्य ऋजुसूत्रवचनविच्छेद: ।
तस्य तु शब्दादिकाः शाखाप्रशाखाः सूक्ष्मभेदा: ॥5॥
अन्वयार्थ : [उज्जुसुयवयणविच्छेदो] ऋज़ुसूत्रनय (का) वचन-व्यवहार (ही) [पज्जवणयस्स] पर्यायार्थिक नय का [मूलणिमेणं] मूल स्थान (है) [सद्दाईआ] शब्दादिक (शब्दनय, समभिरूढ़नय, एवंभूतनय) [उ तस्य] तो उस (ऋजुसूत्रनय) के [साहपसाहा] शाखा-प्रशाखा (रूप) [सुहुमभेया] सूक्ष्म भेद हैं ।
Meaning : Rjusutra Naya is the very foundation of the Paryayastika Naya. Sabda and other minor Nayas are, of course, subtle varieties of Rjusutra, its branches and twigs.

  विशेष 




loading