उप्पज्जंति वियंति य भावा नियमेण पज्जवणयस्स ।
दव्वट्ठियस्स सव्वं सया अणुप्पन्नमविणट्ठं ॥11॥
उत्पद्यन्ते वियन्ति च भावा नियमेन पर्यवनयस्य ।
द्रव्यार्थिकस्य सर्वं सदानुत्पन्नमविनष्टम् ॥11॥
अन्वयार्थ : [पज्जवणयस्स] पर्यायार्थिक नय की (दृष्टि में) [भावा] पदार्थ [णियमेण] नियम से [उप्पज्जंति] उत्पन्न होते हैं [वियंति] नष्ट होते हैं [य] और [दव्वट्ठियस्स] द्रव्यार्थिक (नय) की (दृष्टि में) [सया] सदा [सव्वं] सभी (पदार्थ) [अणुष्पण्णमविणट्ठं] न उत्पन्न होते न नष्ट होते हैं ।
Meaning : From the standpoint of Paryayastika all things are necessarily born and perish; Dravyastika, on the other hand, holds that all things exist eternally without birth and decay.

  विशेष