+ नयों की यथार्थता -
ण य तइयो अस्थि णओ ण य सम्मत्तं ण तेसु पडिपुण्णं ।
जेण दुवे एगन्ता विभजमाणा अणेगन्तो ॥14॥
न च तृतीयोऽस्ति नयो न च सम्यक्त्वं न तयोः प्रतिपूर्णम् ।
येन द्वावेकान्तौ विभज्यमानावनेकान्तौ ॥14॥
अन्वयार्थ : [य] और [तइओ] तीसरा [णयो] नय [ण] नहीं [अत्यि] है [य] और [तेसु] उनमें (उन दोनों नयों में) [पडिपुण्णं] परिपूर्ण [सम्मत्तं] सम्यक्त्व (यथार्थपना) [णयं] नय [ण] नहीं है (ऐसा) [ण] नहीं है [जेण] जिससे [दुवे] दोनों [एंगता] एकान्त (नय) [विभज्जमाणा] भजमान (परस्पर सापेक्ष कथन करने पर) [अणेगंतो] अनेकान्त कहे जाते हैं ।
Meaning : There is no third Naya. Moreover, it can not be said that truth cannot be adequately expressed by these two Nayas; for if we combine both these standpoints in their particular aspects we can certainly arrive at the truth by the method of Anekanta (The Versatility of Aspects).

  विशेष