तत्राद्ययोव्र्यतीते समये संपूर्णयोस्तृतीयाया: ।
पल्योपमाष्टमांशन्यूनाया: कुलधरा ये स्यु: ॥१२॥
तेषामाद्यो नाम्ना प्रतिश्रुति: सन्मतिद्र्वितीय स्यात् ।
क्षेमंकरस्तृतीय: क्षेमंधरसंज्ञकस्तुर्य: ॥१३॥
सीमंकरस्तथान्य: सीमंधरसाह्व्यो विमलवाह: ।
चक्षुष्माँश्च यशस्वानभिचंद्रश्चन्द्राभनामा च ॥१४॥
मरूदेवनामधेय: प्रसेनजिन्नाभिराजनामान्त्य: ।
हामाधिक्काराननुशासति निजतेजस: स्खलितान् ॥१५॥
हाकारं पंच ततो हामाकारं च पंच पंचान्ये ।
हामाधिक्कारान् कथयंति तनोर्दण्डनं भरत: ॥१६॥
अन्वयार्थ : पहले दो काल बीत जाने पर और तीसरे काल में पल्य का आठवाँ भाग शेष रह जाने पर प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान, अभिचंद्र, चन्द्राभ, मरूदेव, प्रसेनजित् और नाभिराज इन चौदह कुलकरों की उत्पत्ति हुई। इन्होंने अपने प्रताप से हा! मा! धिक्! इन शब्दों से ही पृथ्वी का शासन किया अर्थात् उन्हें यदि कभी दंड देने की आवश्यकता होती थी तो इन शब्दों का व्यवहार करते थे। पहले पाँच कुलकरों ने 'हा' शब्द से, दूसरे पाँच ने हा! मा! और अन्त के पाँच कुलकरों ने हा! मा! और धिक! शब्दों से राज्यशासन किया था ॥१२-१६॥